Friday, October 2, 2009

लो शाम हुयी याद आएगी

लो शाम हुयी याद आएगी
कब तक वो हमें तडपायेगी
तुझसे मिलने की आस लिए
दिल की धड़कन रुक जायेगी
यूँ जाम उठा तो लेता मैं
पर ये नज़र झुक जायेगी
जीने की तमन्ना ही कब थी
पर मौत हमें कब आएगी
हर शाम ये कहती हे मुझसे
वो आज नहीं कल आएगी
वो आयें तो क्या होगा ए खुदा
जब उमर ही मेरी ढल जायेगी

Tuesday, September 8, 2009

वो किन्नर है - एक समीक्षा

सखियों गावहु मंगलचार
या फिर
देव असुर गन्धर्व किन्नर
ये पक्तियां 'रामचरित्र मानस ' की हैं जिसमे त्रेता युग में साफ -साफ किन्नर जाति की स्थिति बताई गई है! 'सखी ' अर्थात किन्नर ! जो मंगल- कामना करते हुए सीता को राम के गले में वरमाला डालने के लिए उत्साहित करते हैं और जिनके आशीर्वाद के साथ राम -जानकी विवाह संपन्न होता है ! द्वापर -युग में इन्द्रलोक की एक अप्सरा द्वारा अर्जुन को नंपुसक बनने का शाप दिए जाने तथा अज्ञातवास के दौरान उनके किन्नर वेश धारण करके मत्स्य नरेश के राजभवन में आश्रय लिए जाने का वृतांत मिलता है ! हम सभी जानते हैं की यदि कृष्ण के सुझाव पर किन्नर शिखंडी को सामने करके भीष्म वध ना किया गया होता तो धर्म पर अधर्म की विजय ना होती और विष्णु का कृष्ण अवतार लेने का मकसद कुछ हद तक निरर्थक ही रहता !

किन्नर वे जाति है जिसने देवताओ यक्षो गन्धर्वों के साथ स्थान पाया है ! भारतीय हिंदु संस्कृति में प्राचीन काल से ही किन्नरों का गौरवपूर्ण स्थान रहा है ! दूसरे शब्दों में कहा जाये तो किन्नरों के बिना भारतीय संस्कृति अधूरी है ! भारत में तुर्कों अफगानों व मुगलों के समय में भी किन्नर शाही हरम में निवास करते थे !

समय का पहिया घूमा और किन्नर जाति पर धीरे -धीरे मानो वज्रपात -सा होता गया, जो किन्नर जाति भारतीय संस्कृति का मुख्य हिस्सा थी वे बिखरने लगी और उसकी हालत बद से बदतर होने लगी ! इनकी बदहाली का सबसे बड़ा कारण भारतीय संस्कृति के वे ठेकेदार हैं जो इस अमुलए धरोहर की रक्षा न कर सके और समय के साथ इनको न्याय न दिलवा सके ! आज मस्जिद , मंदिर और सेतु के लिए सेंकडों संगठन व लोग आवाज़ उठा रहे हैं परन्तु क्या वे भूल गए हैं की किन्नर जाति भी वैदिक काल से ही भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है , क्या हमें इनकी रक्षा नहीं करनी चाहिए या फिर हम पत्थरों व बुतों जैसी बेजान चीज़ों के लिए लड़कर भारतीय संस्कृति की रक्षा की दुहाई देते रहेंगे !

आज किन्नर (हिजडा) क्या है एक जाति सूचक शब्द या गाली ! हम समाज में नाई को नाई नही बोल सकते, धोबी को धोबी नही बोल सकते, जमादार को जमादार नही बोल सकते लेकिन किन्नर को हिजडा कह कर उसका अपमान कर सकते हैं ! 'एक मच्छर आदमी को हिजडा बना देता है ' अर्थात नपुसंक बना देता है ये डायलौग ये बताता है की मनुष्य को समाज में क्या उसकी सैक्सपावर से ही पहचाना जाना चाहिए, या फिर मात्र सैक्सपावर ही उसे पुरुषत्व प्रदान करती है, क्या दया -करुणा-क्षमा -प्रेम -धैर्य -शक्ति जैसे गुण पुरुष को पुरुष होने का अहसास नही कराते यदि ऐसा है तो हमारे महान ब्रह्मचारी गुरु गौरखनाथ तथा बाद में आदि नाथपंथी गुरूओं ने अपनी साधना और तपस्या द्वारा समाज में ऊंच-नीच का भेद ख़त्म किया ! ज्ञानमार्गी व योगमार्गी गुरूओं ने विषय वासनाओ का बहिष्कार करके समाज का उद्धार किया केवल यही नहीं ईसाई धर्म में भी नन और मंक बनकर और ब्रह्मचर्ये व्रत लेकर समाज में परोपकार के कार्ये किये जाते हैं !इन सब उदाहरणों से ये स्पष्ट है की गृहस्थ जीवन के बिना केवल ब्रह्मचर्ये द्वारा समाज में दूसरे तरीके अपनाकर मनुष्य देवताओं से भी ऊंचा स्थान पा सकता है !

ये माना की किन्नर हिजडे होते हैं फिर भी उनमें दया -ममता -करुणा-प्रेम धेर्ये -क्षमा आदि मानवीय मूल्य हमारी तरह बल्कि हमसे भी ज्यादा कूट -कूट कर भरे होते हैं ! आज के समय में जब समाज के अन्य वर्ग व जाति के लोग मात्र आरक्षण पाने के लिए सरकार की करोड़ों की सम्पत्ति फूंक देते हैं , विरोध की आढ़ लेकर समाज में कदाचार फैलाते हैं, मंदिर मस्जिद का सहारा लेकर साम्प्रदायिक द्वेष व दंगे भड़काते हैं, कम वेतन व भत्ते की आढ़ लेकर किसी न किसी किसी बहाने सरकार को झुकाते हैं उसी समाज में क्या अपने किसी किन्नर को सरकारी बस में आग लगाते देखा है, रेलगाडी को बीच पटरी पर असमय रोकते देखा है या कहीं तोड़ फोड़ करते देखा है ! किन्नर लोग समाज को नुकसान नही पहुंचाते वह तो अपनी बदहाली पर आज खून के आंसू रो रहे हैं आज उनको सँभालने वाला कोई नही है आज कोई संगठन या संस्था नही है जो किन्नरों की आवाज़ बनकर सामने आये, उनके लिए आरक्षण की मांग करें या उन्हें भी सरकारी पदों पर नियुक्तियों की सिफारिश करें ! किन्नर समाज आज भी शिक्षा व राजनीतिक अधिकारों से वंचित है इसके बावजूद भी सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाए या मानव अधिकार आयोग किन्नरों की उपेक्षा कर रहा है ऐसी हालत में किन्नर करें भी तो क्या करें? आज ज़रूरत है की कोई संगठन इनकी आवाज़ बनकर सामने आये और भारतीय संस्कृति में सदियों से महत्वपूर्ण रहे किन्नर समाज की रक्षा करें !

Sunday, August 30, 2009

भूख का मंज़र

इन्तहां है कहीं गुरबत की कहीं ज़र देखो --
देखना है तो कहीं भूख का मंज़र देखो -
देखते क्या हो तमाशों को ज़माने वालों -
तुम गरीबों के बंधा पेट पर पत्थर देखो -
तेज़ की धूप मैं जिस्म जलता है -
और बरसात में मुफलिसों के गिरे घर देखो -
भूख में रोते हुए बच्चों की सुनो किलकारी -
या किसी माँ का गरीबी में खुला सिर देखो-
रोटियां फैंक दी जाती हैं कहीं कूडों पर -
है निवाले का भी मोहताज कोई घर देखो -
इनसे ना बचिए ये भी खुदा वाले हैं -
इन गरीबों से भी कभी दिल लगा कर देखो.-
तबस्सुम जहाँ


Friday, August 21, 2009

श्रमिक खंड 1

कोटि कोटि वर्चस्व मेरा,
धरणी धरतल का मैं सुत,
अम्बर वहन किये दो कर में,
लिए खड़ा मैं ब्रह्म का पुत्र,
सृष्टि के निर्माण में बना
मैं भी सहभागी,
कहलाया धरती पर मैं,
ईश्वर का अनुगामी,
भुजाएं मेरी विशाल,
पाकर असीम बल,
तोड़ता आया हूँ मैं,
सदा पर्वत निश्छल,
उफनती नदियों को
सदा मोड़ आया हूँ मैं ,
कौंधती बिजलियों को,
सदा रौंद आया हूँ मैं,
खड़े किये हैं मैंने ही,
जाने कितने विशाल भवन,
विशाल अट्टालिकाएं सब,
मेरे ही पुरुषार्थ का फल,
कभी रूप धर किसान का मैं
अमृत मथता आया हूँ,
उपजा कर जीवनदायी अन्न,
जगत की शुधा मिटाता आया हूँ,
सागर को चीर बना कर सेतु,
किया कल्याण में हरि के हेतु,