देखना है तो कहीं भूख का मंज़र देखो -
देखते क्या हो तमाशों को ज़माने वालों -
तुम गरीबों के बंधा पेट पर पत्थर देखो -
तेज़ की धूप मैं जिस्म जलता है -
और बरसात में मुफलिसों के गिरे घर देखो -
भूख में रोते हुए बच्चों की सुनो किलकारी -
या किसी माँ का गरीबी में खुला सिर देखो-
रोटियां फैंक दी जाती हैं कहीं कूडों पर -
है निवाले का भी मोहताज कोई घर देखो -
इनसे ना बचिए ये भी खुदा वाले हैं -
इन गरीबों से भी कभी दिल लगा कर देखो.-
तबस्सुम जहाँ
bahut hi dardnaak sachaai...aap bahut achha likhti hain
ReplyDeleteइनसे ना बचिए ये भी खुदा वाले हैं -
ReplyDeleteइन गरीबों से भी कभी दिल लगा कर देखो.
-बहुत उम्दा ख्याल!! वाह!
bahut hee achchee rachana
ReplyDeletemanbhavan.narayan narayan
ReplyDeleteइनसे ना बचिए ये भी खुदा वाले हैं -
ReplyDeleteइन गरीबों से भी कभी दिल लगा कर देखो
वाह तबस्सुम जी आप बहुत अच्छा लिखती हैं.
आपको पढकर अच्छा लगा.
जहान, बहुत बहुत खूबसूरत! क्या कहूं मेरे पास शब्द नहीं...अल्टीमेट. रिदम और अहसाओं की प्रष्ठभूमि इस रचना की जान है.
ReplyDeleteवधाई. जारी रहें.
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रोटियां फैंक दी जाती हैं कहीं कूडों पर -
ReplyDeleteहै निवाले का भी मोहताज कोई घर देखो -
विसंगतियो को बखूबी आपने उकेरा है.
बेहतरीन अभिव्यक्ति
इन गरीबों से भी कभी दिल लगा कर देखो.-
ReplyDeleteतबस्सुम जहाँ ..baht achha likhti hai aap....
kafi umda likhti hai aap ... aapki har ghzal aur nazm me jaadu hai ...bahut khoob
ReplyDeleteye rachna ka har ek harf fariyaad kar raha hai aap ke bhitar ki gahrai ko samjhne ke liye
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